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कुछ कहता है कवि मन
कुछ कहता है कवि मन, घनघोर घटाएं छाई नभ में, अश्रुधारा में पिघला है तन, मन से पांखें निकली है, किरणों में रहता कवि मन। छिटककर तितली किरणों से ही????, बागों में जा मिलती है, कण कण में जो फूल खिले तो, उड़ता है कवि मन। -शिप्रा
By: © Shipra Jha